आज हम कुछ खास बातें जानेंगे AK-203 असॉल्ट राइफल के बारे में, इस राइफल को उत्पादन के लिए कोरबा, अमेठी में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाया गया है। और पहले बैच के तहत करीबन 7.5 लाख असॉल्ट राइफल बनाई जानी है, ये राइफल मौजूदा इंसास राइफलों की जगह लेने के लिए बनाई जा रही हैं। जहां इंसास राइफल 5.56 mm के छोटे राउंड फायर करती है और इससे केवल एक ही दुश्मन घायल हो सकता है। और दुश्मन के पलट कर वार करने की संभावना अधिक होती है। लेकिन एके—203 के हैवी राउंड से दुश्मन मर ही जाता है। या इतनी बुरी तरह से घायल हो जाता है की उसके पलट कर वार करने की संभावना खत्म हो जाती है। इसकी 7.62 MM की बुलेट में एनमी किल फैक्टर ज्यादा है।
How the AK-203 assault rifle is a unique and powerful rifle.
एके—203 को एके—47 के ही डिजाइन से ड्राइव किया गया है। जिस वजह से ये काफी भरोसेमंद है। साथ ही इसे आसानी से मेंटेनन्स किया जा सकता है। और ये सोल्जर फ्रेंडली भी है। इसलिए ये राइफल सेना, नेवी, एयर फोर्स, पैरा मिलिट्री फोर्स, बीएसफ, आइटीबीपी, राष्ट्रीय राइफल, और सीआईएसफ सभी को दी जानी है। और आगे इस राइफल की 20 लाख से ज्यादा यूनिट बनाई जा सकती है।
पहले बात करते हैं AK 47 राइफल की
ये राइफल अभी भी काफी भरोसेमंद हथियार है। एक बात और ये हे की कैसे एक हथियार पर भरोसा किया जाता है। एैसे में एके—47 एक मात्र वो राइफल है जो प्रुवेन राइफल है। ये बारिश हो, धूल हो, बर्फबारी हो, कीचड़ हो, दलदल हो या थार का मरुस्थल हो या साइबेरिया का ठंडा इलाका। ये 100 प्रतिशत फायर करती है। यानी ये बस चलना जानती है। चाहे कैसे भी हालात हो ये धोखा नहीं देती। सिर्फ फायर करती है। इस राइफल की सबसे बड़ी काबिलियत ये है की ये कभी भी जैम नही होती। और हर तरह के मौसम, वातावरण में ऑपरेशनल रहती है।
वहीं अगर बात करें एके—203 राइफल की मैगजीन की तो इसमें 30 राउंड बुलेट भरी जा सकती है। इसकी इफेक्टिव रेंज 400 मीटर तक है। और एक मिनट में 600 राउंड फायर कर सकती है। इसकी बुलेट्स 100 प्रतिशत प्रीसाइज और एक्यूरेट होते हैं। और इसे ऑटोमेटिक और सेमी ऑटोमेटिक दोनों मोड में इस्तेमाल भी किया जा सकता है। इस राइफल पर लगने वाली बुलेट 7.62 mm की होती है। जो नाटो (NATO) स्टैंडर्ड बुलेट है।
जहां तक इन्फेंट्री सोल्जर के भरोसे की बात आती है तो जो प्लाटून लेवल एक्शन में वन टू वन फाइट करता है, तो किसी भी सिपाही की हथियार के बारे में दो ही राय होती है पहली कीे मेरे पास मेरे दुश्मन से अच्छा हथियार सिस्टम हो और दूसरा अगर मैं कभी अपने दुश्मन को हिट करूं तो मेरा हथियार मुझे धोखा ना दे। यानी एक सैनिक अपना हथियार सही जगह और सही समय पर चाहता है।
आगे अगर बात करें AK-203 राइफल की तो इसकी मेटलर्जी बेहतर उच्च गुणवत्ता की है। साथ ही इसकी तकनीक भी काफी एडवांस है। और इसकी एक और खास बात ये है इसमें वेपन रन अवे का जो प्रतिशत है वो ना के बराबर है यानी निल है। वेपन रन अवे का मतलब जब कोई हथियार जमीन पर गिर जाए तो उसका रिकॉइल से हथियार से अपने आप फायर नहीं होगा। ये चीज एके—203 में नहीं मिलती है। इसका मड टेस्ट भी किया गया, मड टेस्ट में राइफल को कीचड़ में फेंक दिया जाता है। फिर उसे निकाल कर फायर किया जाता है। ये फिर भी फायर करती है। लेकिन ये टेस्ट हर राइफल पास नहीं कर सकती है। सियचिन में इंसास राइफल का अगर इस्तेमाल किया जाए तो आपको इसे थोड़ा गर्म करना पड़ता है। तभी ये ऑपरेशनल हो पाएगी। लेकिन एके—203 में एैसी कोई समस्या नहीं आती क्योंकि एके सीरीज की राइफलें रसियन आर्कटिक में तैयार की जाती है। यही कारण है इसे इसके डिजाइन और मेटरलर्जी को इस तरह से बनाया गया है कि ये जीरो कंडीशन में भी अपना काम कर सके।
आप इसे डेजर्ट कंडीशन में भी इस्तेमाल कर सकते हैंं। ये सारी खूबियां ही मिलकर AK-203 को बेहद भरोसेमंद राइफल बनाती है। अब हम बात करते हैं इसकी साइट स्कोप और पिकेट्री रेल सिस्टम की।
इस राइफल को इसके सारे स्कोप और रेल सिस्टम के साथ डिजाइन किया गया है। जो इसे एक अलग तरह का वेपन बना देता है। पिकेट्री रेल सिस्टम के साथ डे साइट और नाइट साइट के अलावा पैनोरेमिक साइट को भी एक साथ राइफल के उपर माउंट किया जा सकता है। और इसके बैरल के नीचे एक अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर लगाया जा सकता है। जिससे एक सैनिक की क्षमता काफी बढ़ जाती है। इस राइफल से एक जबरदस्त तकनीकी उछाल मिलता है हमारी मिलिट्री फोर्सेज को।
एके—203 डील के जरिए बेसिक वेपन टेक्नोलॉजी से हम स्वदेशीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। इस राइफल को हम देश में बनाएंगे। जिससे भारत में बेसिक इकोसिस्टम तैयार होगा। और हम अपनी जरूरत की राइफल को बनाने के बाद इसे निर्यात भी कर सकेंगे। साथ ही हम बड़े हथियार आयातक से हट कर हथियार निर्यातक देश बनने की दिशा में आगे बढेंगे। इस कारण आने वाले कुछ सालों में हम वेपन टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर हो सकेंगे।
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Good work