भारत चीन और पाकिस्तान की बढ़ती हुई ताकत को देखते हुए अपनी ताकत को तेजी से बढ़ा रहा है। आज आपको हम बताने वाले हैं भारत की बैलिस्टिक मिसाइल रि—एंट्री व्हीकल के बारे में।
बैलिस्टिक मिसाइल पहले बाहरी वातावरण यानी अंतरिक्ष में जाती है। और फिर वहां से 60 से 70 किलोमीटर उपर जा कर 180 डिग्री का टर्न लेकर फिर से वायुमंडल में प्रवेश करती है। इसे रि—एंट्री व्हीकल कहा जाता है। फिर ये अपने वॉरहेड को छोड़ती है। इस वॉरहेड में दो लेजर जाइरो रिंग लगे होते हैं। एक क्लॉकवाइज और दूसरी एंटी क्लॉकवाइज। इसे अपने टारगेट पर सेट करके छोड़ दिया जाता है। वॉरहेड फिर गुरुत्वाकर्षण यानी ग्रेवटी पॉवर से नीचे आती है। जिससे इसकी गति 20 मैक तक हो सकती है। लेकिन इसमें एक लूप भी है अगर किसी रडार ने इसकी प्रक्षेपवक्र यानी (trajectory) को ट्रेस कर लिया तो वो इसे आसानी से पहचान सकता है की ये कहां जाकर गिरेगी। एैसे में इसके खिलाफ कोई कारगर हमला करके इसे फेल भी कर सकता है। लेकिन एक हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल एक अनमैन्ड एयरक्राफ्ट की तरह होती है। और ये पूरे टाइम को प्रोपेल करती है। जिससे इसका प्रक्षेपवक्र को समझा नहीं जा सकता है। और इसे मार गिराया नहीं जा सकता है।
अब बात आती है हाइपरसोनिक स्पीड की जरूरत क्यों है?
अगर हाइपरसोनिक स्पीड की मिसाइल पर एक टन का वॉरहेड लगाया जाए तो ये अपनी स्पीड की वजह से इसके ब्लास्ट के इम्पैक्ट को 36 गुना तक बढ़ा देती है।
बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम एक इंटरसेप्टर मिसाइल सिस्टम है। ये वो हथियार होता है जो दुश्मन की किसी भी आती हुई मिसाइल को हवा में ही खत्म कर देता है।
इसमें दो स्तर यानी लेयर होते हैं। पहला पृथ्वी एयर डिफेंस ये मिसाइल किसी भी मिसाइल को 80 किलोमीटर की उंचाई पर हिट कर सकती है। पर इसमें कोई विस्फोट नहीं होगा। ये अपनी काइनेटिक एनर्जी से दुश्मन की मिसाइल को हिट कर देगी।
दूसरा एंडवांस एयर डिफेंस सिस्टम इसमें मिसाइल 40 किलोमीटर की ऊंचाई पर हिट करेगा। इसमें दो मिसाइल होंगी पहली अश्विन और दूसरी प्रद्युम्न। इन दोनों के नाम महाभारत में पांडव पुत्रों के नाम पर रखे गए हैं। ये दोनों ही मिसाइलें हाइपरसोनिक स्पीड की होगी। आपको बता दें की कोई भी देश केवल एक ही एयर डिफेंस सिस्टम पर निर्भर नहीं रहता है। यही वजह है की भारत भी इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल कर रहा है।
Read Also: