DRDO new next Generation Akash-NG Power and Specification :
भारत की स्वदेशी आकाश-एनजी जमीन से हवा में मार करने वाली नेक्स्ट जेनरेशन की मिसाइल है, और रेज है 80 किमी। इस मिसाइल की खास बात ये है की इसमें एक थ्रटल सिस्टम लगा है जो इसकी गति यानी स्पीड को कम या ज्यादा कर सकता है।
इसके कंबशन चेंबर जहां सॉलिड फ्यूल मल्टी लेयर में लगा है। और आगे से एयर इंटेक से आती हवा को एक वाल्व सिस्टम से हवा को कंट्रोल करने के लिए मिसाइल की स्पीड को तेज या धीमा किया जा सकता हैं यानी अगर वॉल्व से ज्यादा हवा भेजी जाए तो फ्यूल ज्यादा तेजी से जलने लगेगा। जिससे मिसाइल की स्पीड बहुत तेजी से बढ़ जाती है। और अगर हवा को कम भेजा जाएगा तो स्पीड घट जाती है।

मतलब साफ है की अगर टारगेट दूर है तो इसकी स्पीड कम और टारगेट पास है तो स्पीड ज्यादा हो जाती है। इसे ही थ्रटल सिस्टम कहा जाता है।
आकाश-एनजी की गतिशीलता (maneuverability) बहुत ऊंचे दर्जे की है। आकाश—एनजी को मोबाइल प्लेटफॉर्म से लॉन्च किया जा सकता है। वजन इसका 720 किलोग्राम है। ये बीस किलोमीटर की उंचाई तक जाकर दुश्मनों की मिसाइल या विमानों को नष्ट कर सकती है।
इसके प्रोपेलेंट की अगर बात की जाए तो वो पूरी तरह से स्मोक लेस है। यानी कि मिसाइल फायर होने के बाद सफेद रंग की लकीर नहीं बनाएगी।। इस मिसाइल को डीआरडीओ की पुणे की लैब HEMRL ने बनाया है।

आकाश का एक नया एंटी एडवांस सीकर है जो इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर को काउंटर करके दुश्मनों के फाइटर जेट को हिट कर देता है। किसी भी मिसाइल का सबसे जरूरी उपकरण यानी पार्ट्स उसका सीकर होता है और जिस फैब में यह बनता है उसकी कीमत 15 हजार करोड़ होती है। और ये फैब अब भारत में ही बन चुका है। जिससे हमारी सेना जैसी भी मिसाइल चाहे उन्हें वो बना कर दी जा सकती है।
इस समय को आप भारत का गोल्डन पीरियड कह सकते हैं। एक और महत्वपूर्ण बात ये है की उस वक्त एडीए के डायरेक्टर महामहिम ए पी जे अब्दुल कलाम जी का इस पूरे प्रोग्राम में सबसे बड़ा योगदान रहा।

इस प्रोग्राम में वक्त जरूर लगा है लेकिन आज हम एक मजबूत आधार पर आ चुके हैं। भारत आकाश एनजी पर तेजी से काम कर रहा हैं जिसमें थ्रटल सिस्टम का इस्तेमाल होगा और रैम जेट तकनीक में हम मास्टर बन चुके हैं। इस तकनीक को ब्रह्मोस एनजी और आकाश एनजी में लगाया जा रहा है।
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